पिंजडे मेँ भगवान के दर्शन
आज दशहरा का त्यौहार है लोग अलग अलग अर्थ मेँ इसे मनाते हैँ और अलग अलग तरीके से मनाते हैँ।कुछ तरीकोँ का मुझे सीधा अर्थ समझ मेँ ही नहीँ आता जैसे कुछ ब्राह्मण और क्षत्रिय परिवारोँ मेँ कुछ गोबर के छोटे छोटे उपलोँ के ऊपर तरोई या लौकी के फूल चिपकाकर उनकी पूजा की जाती है। आज के दिन कटनास को देखना बडा ही शुभ माना जाता है । बहेलिया कटनास को पिँजडे मेँ पकड कर ऊपर से कपडा ढककर लाता है और कुछ आटा या रुपए लेकर दर्शन करवाता है। मेरे ये पूछे जाने पर की बाहर जाकर पिँजडे मेँ बन्द चिडिया को देखना क्योँ जरुरी है ,मुझे बताया गया कि देवता होते हैँ।मैँने कहा तो ये पिजडे मेँ क्योँ बन्द है,इसका जवाब देने के बजाय बाहर से कटनास लाकर अन्दर मुझे कमरे मेँ ही दर्शन कराए गए।बार बार वो अपनी चोँच पिँजडे से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था और बडी ध्यान से ऐसे देख रहा था जैसे पूछ रहा हो मैँने किसी का क्या बिगाडा।मेरे बस मेँ होता तो उस सुन्दर पक्षी को तुरन्त आजाद कर देता।मगर मैँ बस उसे छूकर और प्रणाम करके ही रह गया।ये बात तो बिल्कुल सही है कि इस प्रकृति मेँ ही ईश्वर है,पेड्.पशु,और पक्षियोँ के रुप मेँ मगर हमने वो वातावरण खो दिया है जिसमेँ स्वतंत्र रुप से विचरण करते हुए इनका दर्शन कर सकेँ। ईँट,गिट्टी के जंगलोँ मेँ पिँजडे मेँ होँगे भगवान के दर्शन?
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