क्या आपने कभी किसी को इतना नजदीक आने ही नहीं दिया कि वह आपकी मदद कर सके? या कभी इतनी दूरी बना लिए की खुद ही अकेले पड़ गए ?दूरी से दीवारें बनती हैं और दीवारों के पीछे सिर्फ सन्नाटा होता है ।शक्ति वह है जो दूसरों से जुड़ना जानती है ।जो खुद को सबसे ज्यादा बचाता है वही सबसे जल्दी टूटता है कभी-कभी बड़ा डर किले के अंदर ही छिपा होता है।शक्ति पाने के लिए जुड़ना सीखिए अलगाव नहीं । अपने आसपास ईमानदार लोगों का नेटवर्क रखें ,आलोचना को जगह दें, भावनात्मक रूप से अलग ना हो संवाद बनाए रखें। खुद को सेफ जोन से बाहर लाना सीखे। शक्ति तभी टिकेगी जब आप जुड़े रहेंगे। बंद दरवाजा के पीछे ताकत नहीं डर होता है ।समाज साथ चलने से बनता है अकेले रहने से नहीं। अलगाव से तनाव, आत्म संदेह और डिप्रेशन बढ़ते हैं ।'किले' में नहीं 'कंधे से कंधा' मिलाकर चलो ।अकेले रहने की आदत आपको भावनात्मक रूप से कमजोर करती है ।कठिनाइयों में खुद को लोगों से काट लेना समाधान नहीं बोझ है। संवाद मत बंद करो। मदद मांगो। यही असली शक्ति है ।कोई सीईओ अगर सिर्फ केबिन में छुपा रहेगा तो ना जमीनी हकीकत समझ पाएगा ना कर्मचारी का विश्वास। खुले दरवाजे वाली नीति अपनाने वाले लीडर ज्यादा प्रेरक ज्यादा भरोसेमंद होते हैं ।जो नेता जनता से कट जाता है वह आउट ऑफ टच हो जाता है ।चुनाव में दिखना और बाकी समय गायब रहना यह आज के समय में हार की सबसे बड़ी वजह है 1857 की क्रांति के समय बहादुर शाह ने लाल किले में खुद को सीमित कर लिया था। परिणामस्वरुप अंग्रेजों ने उन्हें बंदी बना लिया। अलगाव में आप ना तो मौके पकड़ सकते हैं और ना ही समय पर खतरे पहचान सकते हैं और जो दिखाई नहीं देता वही सबसे बड़ा निशान बनता है ।खुद को किले में बंद मत करो ।शक्ति नेटवर्क में है ना कि अकेलेपन में। जब हम डरते हैं तो हम खुद को अलग कर लेते हैं दोस्तों, रिश्तो ,दुनिया से, लेकिन यही दूरी धीरे-धीरे हमारी शक्ति को खोखला कर देती है
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