कल भारत बँद था।ये भारत बँद का कार्यक्रम जिस आम आदमी के लिए था,वही बँद से परेशान और दूर था।दर्जनोँ बसेँ जला दी गयीँ ,अपनी सियासी रोटियाँ सेँकने के लिए।हम तो आज भी वहीँ हैँ जहाँ परसोँ थे।ये भारत बँद ठीक उसी प्रकार था जिस प्रकार जुकाम मेँ नाक बँद होता है।आम जनता का आन्दोलन नहीँ और न ही सियासी पार्टियोँ की रैलियाँ,अगर अब बदलाव होगा तो किसी वैचारिक क्रान्ति से। हमारा प्रतिनिधित्व करने वाले हमसे से ही चुनके जाते हैँ अर्थात जब खुद के अन्दर नैतिक आन्दोलन होगा तो परिवर्तन तो होना ही है।
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