कल टूटे पाइडल वाली साइकिल पर दुकानोँ का चक्कर काटते-काटते हरदोई बहुत बडा शहर लगने लगा था।गरीबी मेँ आटा गीला तो होना ही था तो दुकानदार ने 21रु की किताब 25 मेँ थमा दी। हम भी बहुत मजबूर थे, किताब तो लेनी ही थी तो खुद को बडे शहर का बडा आदमी समझकर खरीद ली।
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