जब दर-दर पर जाकर ठोकर मिली,
सूनसान राहोँ पर भटकना ही अच्छा लगा।
फूल बनकर जब मैँ घिरा मालियोँ से,
ते हवा मेँ छिटकना ही अच्छा लगा।

दोस्ती के लिए बढे हाथ,
मेरी गर्दन तक पहुँच गये
झूठ का बनाकर सौदागर मुझे
मौकापरस्त निकल गये।

मुझे अब महफिलेँ ठुकराना ही अच्छा लगा
नजरेँ चुराना ही अच्छा लगा
सबसे दूर जाना ही अच्छा लगा।

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