मेरठ, उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक शहर, न केवल अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के लिए जाना जाता है, बल्कि एक समय यह अपनी अनूठी दिहाती फिल्म इंडस्ट्री के लिए भी चर्चा में था। इस इंडस्ट्री को स्थानीय लोग प्यार से ‘मॉलीवुड’ कहते थे। मेरठ की दिहाती फिल्में ग्रामीण जीवन, स्थानीय संस्कृति और सामाजिक मुद्दों को केंद्र में रखकर बनाई जाती थीं। ये फिल्में सिनेमाघरों के बजाय वीडियो सीडी (VCD) के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचती थीं, जिसने इस इंडस्ट्री को एक अलग पहचान दी। यह लेख मेरठ की दिहाती फिल्म इंडस्ट्री, इसके प्रमुख स्टूडियो, कलाकारों और कुछ उल्लेखनीय फिल्मों पर प्रकाश डालता है।
मेरठ की दिहाती फिल्म इंडस्ट्री का उदय
2000 के दशक की शुरुआत में, जब वीडियो सीडी का चलन अपने चरम पर था, मेरठ में दिहाती फिल्मों का निर्माण शुरू हुआ। ये फिल्में कम बजट में बनाई जाती थीं और इनका लक्ष्य मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा के ग्रामीण दर्शक थे। इन फिल्मों की कहानियां स्थानीय बोली-भाषा, जैसे ब्रजभाषा और हिंदी, में होती थीं, जो दर्शकों के दिलों को छूती थीं। मॉलीवुड की खासियत थी कि यह आत्मनिर्भर थी—शूटिंग से लेकर पोस्ट-प्रोडक्शन तक का काम मेरठ में ही पूरा हो जाता था।
मेरठ में कई स्टूडियो खुल गए, जहां फिल्मों की एडिटिंग, डबिंग और बैकग्राउंड म्यूजिक का काम होता था। शूटिंग के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांवों और उत्तराखंड के शहरों का इस्तेमाल किया जाता था। इन फिल्मों की लागत कम रखने के लिए स्थानीय कलाकारों को मौका दिया जाता था, हालांकि कुछ फिल्मों में बॉलीवुड के नामी कलाकार और गायक भी शामिल हुए।
प्रमुख फिल्म स्टूडियो
मेरठ की दिहाती फिल्म इंडस्ट्री में कई छोटे-बड़े स्टूडियो सक्रिय थे, जो इस इंडस्ट्री की रीढ़ थे। हालांकि इनमें से कई स्टूडियो आज बंद हो चुके हैं, कुछ प्रमुख स्टूडियो निम्नलिखित थे:
इंद्रा फिल्म्स: यह मेरठ का एक जाना-माना स्टूडियो था, जो दिहाती फिल्मों के निर्माण और वितरण में सक्रिय था। इस स्टूडियो ने कई लोकप्रिय फिल्में बनाईं, जो स्थानीय बाजार में खूब चलीं।
यूनाइटेड पिक्चर्स: यह स्टूडियो मेरठ और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फिल्म वितरण के लिए प्रसिद्ध था। यूनाइटेड पिक्चर्स ने न केवल दिहाती फिल्में, बल्कि बॉलीवुड की फिल्मों को भी मेरठ में रिलीज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
स्थानीय पोस्ट-प्रोडक्शन स्टूडियो: मेरठ में कई छोटे स्टूडियो थे, जो विशेष रूप से एडिटिंग और डबिंग के लिए जाने जाते थे। इन स्टूडियो ने कम लागत में उच्च गुणवत्ता का काम प्रदान किया, जिससे मॉलीवुड आत्मनिर्भर बन सका।
प्रमुख कलाकार और निर्देशक
मेरठ की दिहाती फिल्म इंडस्ट्री ने कई स्थानीय कलाकारों को मौका दिया, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से दर्शकों का दिल जीता। कुछ बॉलीवुड कलाकारों और गायकों ने भी इस इंडस्ट्री में योगदान दिया। प्रमुख नाम निम्नलिखित हैं:
मोहम्मद हनीफ: 26 साल तक बॉलीवुड में काम करने वाले निर्देशक मोहम्मद हनीफ ने मॉलीवुड के लिए कई फिल्में बनाईं, जिनमें लोफर, अंगार ही अंगार और प्यार की जंग शामिल हैं।
एसयू सैयद: बॉलीवुड में किस्मत आजमा चुके निर्देशक एसयू सैयद ने मॉलीवुड में रामगढ़ की बसंती जैसी फिल्म बनाई, जो दर्शकों के बीच लोकप्रिय हुई।
कादर खान: बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता कादर खान ने उत्तर कुमार की फिल्म कुणबा में अभिनय किया, जिसने मॉलीवुड को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
उदित नारायण और अल्का याग्निक: इन मशहूर गायकों ने मॉलीवुड की कुछ फिल्मों के लिए अपनी आवाज दी, जिससे इन फिल्मों की लोकप्रियता बढ़ी।
ओपी राय: लाट साहब, कट्टो जैसी फिल्मों के निर्माता ओपी राय मॉलीवुड के महत्वपूर्ण हस्तियों में से एक थे। उन्होंने इंडस्ट्री की चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला, जैसे संगठन की कमी और सरकारी सहायता का अभाव।
उल्लेखनीय फिल्में
मेरठ की दिहाती फिल्म इंडस्ट्री ने कई ऐसी फिल्में दीं, जो स्थानीय दर्शकों के बीच खूब लोकप्रिय हुईं। इनमें से कुछ प्रमुख फिल्में निम्नलिखित हैं:
लोफर: मोहम्मद हनीफ द्वारा निर्देशित यह फिल्म एक एक्शन-ड्रामा थी, जो ग्रामीण दर्शकों के बीच हिट रही।
अंगार ही अंगार: यह फिल्म अपनी दमदार कहानी और स्थानीय कलाकारों के अभिनय के लिए जानी जाती है।
प्यार की जंग: रोमांस और एक्शन का मिश्रण, इस फिल्म ने मॉलीवुड की लोकप्रियता को बढ़ाया।
रामगढ़ की बसंती: एसयू सैयद की यह फिल्म एक मनोरंजक कहानी के साथ दर्शकों को आकर्षित करने में सफल रही।
कुणबा: कादर खान की मौजूदगी ने इस फिल्म को मॉलीवुड की सबसे चर्चित फिल्मों में से एक बना दिया।
लाट साहब और कट्टो: ओपी राय द्वारा निर्मित ये फिल्में स्थानीय संस्कृति और हास्य का बेहतरीन मिश्रण थीं।
मेरठ की दिहाती फिल्म इंडस्ट्री ने अपने सुनहरे दौर में कई उपलब्धियां हासिल कीं, लेकिन इसे कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। निर्माता ओपी राय के अनुसार, इंडस्ट्री संगठित नहीं हो पाई क्योंकि प्रतिभाशाली कलाकार जल्द ही बॉलीवुड की ओर रुख कर लेते थे। इसके अलावा, विभिन्न संगठनों के बीच तालमेल की कमी और सरकारी सहायता का अभाव भी प्रमुख समस्याएं थीं।
2000 के दशक के अंत में डिजिटल क्रांति और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के उदय के साथ वीडियो सीडी का बाजार सिकुड़ गया। सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली बड़े बजट की फिल्मों ने भी मॉलीवुड की लोकप्रियता को प्रभावित किया। नतीजतन, मेरठ की दिहाती फिल्म इंडस्ट्री धीरे-धीरे अपने अस्तित्व को खोने लगी।
मॉलीवुड ने ग्रामीण भारत की कहानियों को सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन फिल्मों ने स्थानीय संस्कृति, बोली और सामाजिक मुद्दों को दर्शाया, जिससे दर्शकों को अपनी जड़ों से जुड़ाव महसूस हुआ। कम बजट में बनी ये फिल्में मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक संदेश भी देती थीं। मॉलीवुड ने यह भी साबित किया कि बड़े स्टूडियो और भारी बजट के बिना भी सिनेमा का जादू रचा जा सकता है।
मेरठ की दिहाती फिल्म इंडस्ट्री, यानी मॉलीवुड, भारतीय सिनेमा के इतिहास का एक अनूठा अध्याय है। यह इंडस्ट्री भले ही आज अपने चरम पर न हो, लेकिन इसने स्थानीय कलाकारों को मंच प्रदान किया और ग्रामीण दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बनाई। मॉलीवुड की कहानी हमें यह सिखाती है कि सिनेमा केवल बड़े शहरों तक सीमित नहीं है; यह हर उस जगह फल-फूल सकता है, जहां कहानियां और सपने हैं।
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