अब बस तैर जाऊँगा

बहुत हल्का महसूस हो रहा है मुझे लगता है कि अब कोई हवा उडा ले जाएगी। किसी नदी के किनारे पर बैठकर अगर मन को शीतल करने की कोशिश करुँ तो शायद ये धारा मुझे बहा ले जाए।अब कोई बसंत मुझसे झूमने के लिए नहीँ कहेगा।ये निर्णय के पूर्व की निराशा नहीँ है।यह तो मेरी अकर्मण्यता के कारण मन मेँ उत्पन्न टीस है।अगर मेरा अतिलघु चरित्र किसी के सामने बिजली के समान कौँध जाए तो समझ लूँगा कि मेरी मौजूदगी मेरे कर्म से ज्यादा प्रेरणादायक थी।
कुछ लोगोँ की जिन्दगी मेँ असमय ही ठहराव आ जाएगा।
मेरी कोई ऐसी खास कर्मभूमि भी नहीँ है कि लोगोँ को बार-बार ठहरा जाए।
किसी के भी जीवन का पहिया इस प्रकार दलदल मेँ ना धँसे ऐसी मेरी इच्छा है।
मैँ तो उन हवाओँ मेँ बहने को बेताब हूँ पर वे हवाएँ............
ये उच्च कार्य नहीँ परन्तु यह जीवन की निरीहता से उच्च है।

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