.....उन्हेँ कुर्सी नहीँ मिली

.....एक रैली मेँ था....फोटो,वीडिया पत्रकार गैलरी जिसमेँ थोड़ी सी जगह
मेँ लद कर फोटो और वीडियो बना रहे थे,उसके दाँये ओर बैठा था। महिलाओँ के
बैठने की व्यवस्था तो कहीँ दिखी नहीँ थी और न ही कोई महिला दिख रही
थी।मँच पर एक महिला प्रत्याशी जरुर कालेज गर्ल की तरह कूद-फाँद करती दिख
रही थीँ। मुख्य अतिथि के आगमन के पाँच मिनट पूर्व तीन महिलाएँ जिनमेँ एक
बुजुर्ग महिला भी थी,बल्लियोँ को पार करते हुए दाखिल हुयीँ....और प्रथम
पँक्ति मेँ बैठे देशभक्तोँ से स्थान के लिए आग्रह किया परन्तु कोई भी
अपनी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीँ हुआ।मैँ कुछ दूरी पर था सो न तो वो भीड़
मेँ वहाँ तक पहुँच सकती थीँ और न मेरी कुर्सी उन तक। मातृ शक्ति के
सम्मान की बात करने वालोँ के अन्धभक्तोँ से बुजुर्ग महिला के लिए कुर्सी
तक नहीँ छोड़ी गयी।वे खड़े होकर ही आधा घंण्टा मुख्य अतिथि को सुनती
रहीँ;पर कह रही थीँ अच्छे दिन आने वाले हैँ।

नेता अपना टाप है, जिला हमारा फ्लाप है।

देश मेँ मोदी की लहर की बात हो रही है पर ये लहर किन-किन जगहोँ पर
बड़ी-बड़ी चट्टानोँ और वायुदाब के भौगोलिक चक्करोँ मेँ पड़कर अपना अस्तित्व
समाप्त कर लेगी ये देखने वाली बात है पर ये लहर कहीँ मूर्ख का स्वर्ग तो
नहीँ जो शहरी युवा मतदाताओँ की दिलोदिमाग को वश मेँ किए है ग्रामीण लाठी
और घूँघट पर शायद कोई असर ही न हो इस लहर का।

हरदोई सुरक्षित सीट पर मोदी की लहर को रोकने वाली एक बड़ी चट्टान होँगे
नरेश अग्रवाल,इसमेँ शक की जिसे भी गुँजाइश है समझ लो वो समझ से वास्ता ही
नहीँ रखता।
समाजवादी पार्टी प्रत्याशी ऊषा वर्मा के चुनाव प्रचार के दौरान वे उनकी
जीत या हार को अपने कद और पद के साथ जोड़कर लोगोँ के सामने पेश कर रहे हैँ
और शहर की सीमा के बाहर खेतोँ मेँ भगवान से उम्मीद ताकते किसानोँ के लिए
रोजगार,शिक्षा,गवर्नेँस मुद्दे मुँह खोलकर ये सुनने की बात होते हैँ कि
क्या कह गये, ये जरुर हो सकता है कि गुड़गाँव,लुधियाना,कानपुर जाकर दो जून
की रोटी के जुगाड़ के बारे मेँ सोचने वाले उनके बच्चोँ ने कहीँ
मोदी,गुजरात और रोजगार का नाम कहीँ देख,पढ या सुन लिया हो अन्यथा "हरदोई
का भोकाल","नरेश चालीसा" जैसे शब्द सुनकर ही लाल लहू मेँ साइकिल के पहिए
जैसे घूमते हीमोग्लोबिन के कणोँ से समाजवादिता का संचार शुरु हो जाता है।
रही सही कसर देशी पूरी कर देती है और परधान जी की चाटुकारी योग्यता।

देखिए कितना गजब संयोग है जब हमारे प्रिय नेता अपने राजनीतिक जीवन के
शिखर पर हैँ उसी वक्त उनका जिला लगभग 57% गरीब आबादी के साथ उत्तर प्रदेश
का सबसे ज्यादा गरीबोँ वाला जिला बन गया है और केन्द्र सरकार द्वारा
घोषित अतिपिछड़े 200 जिलोँ मेँ भी हरदोई का नाम है।
हम ट्रैफिक व्यवस्था की बात न करेँ,बड़े कारखाने,महाविद्यालयोँ की भी बात
छोड़ देँ और बात करेँ मूलभूत सुविधाओँ पानी,सड़क और पुलिस व्यवस्था की तो
आप खुद देख सकते हैँ दूसरी बनती है और पहली वाली टूटनी शुरु हो जाती
है...लाइटिंग,साफ सफाई, जल निकासी के लिए नगर पालिका,जिला पँचायत की जब
जिम्मेदारी बनती है तो बात आ जाती है अपने प्रिय नेता जी पर।
जुएँ,शराब,स्मैक ,गाँजा बेखौफ बेचा जा रहा है कहते हैँ संरक्षण है...
भारी भ्रष्टाचार,नकल माफिया कहा जाता है ऊपर से भी तो माँगा जा रहा है
क्या करेँ... नेता जी आशा है भोकाल की बातेँ छोड़कर कुछ आगे की,विषयोँ की
कुछ नयी बातेँ भी हम और आप करेँगे और आपकी तारीफ क्या करुँ करते करते
उँगलियोँ मेँ दर्द शुरु हो जाता है, अन्त मेँ बस इतना ही,"नेता अपना टाप
है,पर जिला हमारा फ्लाप है"।
जब दर-दर पर जाकर ठोकर मिली,
सूनसान राहोँ पर भटकना ही अच्छा लगा।
फूल बनकर जब मैँ घिरा मालियोँ से,
ते हवा मेँ छिटकना ही अच्छा लगा।

दोस्ती के लिए बढे हाथ,
मेरी गर्दन तक पहुँच गये
झूठ का बनाकर सौदागर मुझे
मौकापरस्त निकल गये।

मुझे अब महफिलेँ ठुकराना ही अच्छा लगा
नजरेँ चुराना ही अच्छा लगा
सबसे दूर जाना ही अच्छा लगा।
कल हल्की धूप और पतझड शुरु हो गया। धीरे-धीरे बसन्ती हवा की खुशबू आने लगी थी पर आज झमाझम बारिश से मौसम सावन जैसा हो गया।पर पहले जैसी गलन नहीँ है। मौसम सामान्य ही बना रहे तो अच्छा है,वरना बोर्ड परिक्षा की तैयारी कर रहे छात्रोँ को थोडी असुविधा जरुर होगी।
गंगा जमुना के जिस विशाल मैदान मेँ हम रहते हैँ वहाँ हर मौसम हमारे दरवाजे खटकाता है,पर जब कभी मौसम का भयावह रुप हम देखते हैँ तो सोचते हैँ आखिर यह मौसम क्योँ आता है। जैसे मेरे लिए ठण्ड के मौसम का हर पल परेशान करता है।मैँने कभी इस मौसम मेँ खुद को सहज नहीँ पाया वहीँ गर्मी के मौसम का अधिक से अधिक लाभ मेरे द्वारा उठाया जाता है।सबसे बडी समस्या मेरी कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता है, जो दिन प्रति दिन मुझमेँ ठण्ड के प्रति नफरत के लिए मजबूर करती है। खैर मैँ कोशिश करता हुँ इस ओस,कोहरा, पाला के परिवार से घुलने मिलने की।

पिंजडे मेँ भगवान के दर्शन

आज दशहरा का त्यौहार है लोग अलग अलग अर्थ मेँ इसे मनाते हैँ और अलग अलग तरीके से मनाते हैँ।कुछ तरीकोँ का मुझे सीधा अर्थ समझ मेँ ही नहीँ आता जैसे कुछ ब्राह्मण और क्षत्रिय परिवारोँ मेँ कुछ गोबर के छोटे छोटे उपलोँ के ऊपर तरोई या लौकी के फूल चिपकाकर उनकी पूजा की जाती है। आज के दिन कटनास को देखना बडा ही शुभ माना जाता है । बहेलिया कटनास को पिँजडे मेँ पकड कर ऊपर से कपडा ढककर लाता है और कुछ आटा या रुपए लेकर दर्शन करवाता है। मेरे ये पूछे जाने पर की बाहर जाकर पिँजडे मेँ बन्द चिडिया को देखना क्योँ जरुरी है ,मुझे बताया गया कि देवता होते हैँ।मैँने कहा तो ये पिजडे मेँ क्योँ बन्द है,इसका जवाब देने के बजाय बाहर से कटनास लाकर अन्दर मुझे कमरे मेँ ही दर्शन कराए गए।बार बार वो अपनी चोँच पिँजडे से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था और बडी ध्यान से ऐसे देख रहा था जैसे पूछ रहा हो मैँने किसी का क्या बिगाडा।मेरे बस मेँ होता तो उस सुन्दर पक्षी को तुरन्त आजाद कर देता।मगर मैँ बस उसे छूकर और प्रणाम करके ही रह गया।ये बात तो बिल्कुल सही है कि इस प्रकृति मेँ ही ईश्वर है,पेड्.पशु,और पक्षियोँ के रुप मेँ मगर हमने वो वातावरण खो दिया है जिसमेँ स्वतंत्र रुप से विचरण करते हुए इनका दर्शन कर सकेँ। ईँट,गिट्टी के जंगलोँ मेँ पिँजडे मेँ होँगे भगवान के दर्शन?

अनुशासन का महत्व

आप जब खुद को ही अनुशासनहीन समझने लगते हैँ और लगातार गलतियाँ करते चले जाते हैँ तो आपको यह अहसास भी होने लगता है कि आपने बहुत कुछ खो दिया है और आने वाले समय मेँ खो देँगे। पर यह छण बहुत विचित्र होता है क्योँकि यहाँ से कुछ सुधरे हुए कदम आपको अर्श तक पहुँचा सकते हैँ या विश्वास की कमी और श्रेष्ठता के प्रति अरुचि आपको फर्श पर ला कर पटक सकती है। कुल मिलाकर अनुशासन स्वँय का स्वंय पर नियंत्रण है अर्थात आपके जीवन और दिनचर्या का संविधान,नीतिगत तथ्योँ और आवश्यकताओँ के साथ आपके लिए।यह आपको स्वंय पर गर्व करने का अवसर देता है और घमंड की स्थिति मेँ पहुँचने नहीँ देता।यह कोई चाबुक नहीँ बल्कि ल्क्ष्मण रेखा है जो की आपको कर्त्तव्योँ और नीति के दायरे मेँ रखे। तो यह विचार करना हमारे लिए आवश्यक है कि हम स्वंय को अनुशासन मेँ रखेँ जिससे हमारा जीवन महानता को प्राप्त हो।

मोमोज

बडा चौराहा से सिनेमा चौराहा वाली रोड पर दो चार ऐसे शक्स खडे दिख जाएँगे जिनकी शकल देखकर ही पता लग जाएगा कि ये इस शहर के नहीं हैँ,शायद पूर्वोत्तर के होँ।मगर बहुत साफ हिन्दी बोलते हैँ। वो एक बहुत ही खास तरह का व्यंजन परोसते हैँ जिसका नाम है मोमोज। ये मुख्यत: इसे ठेले पर रख कर बेचते हैँ और एक कडवी लाल चटनी डाल के देते हैँ। मोमोज के बारे मेँ कुछ दिन पहले ही पता चला।बहुत लोगोँ मेँ इसके बारे मेँ चर्चा करते सुना था। कुछ लोग तो कह रहे थे कि इसमेँ अण्डा होता है,कुछ कह रहे थे पनीर होता है।बहरहाल कल स्वाद चखा। सफेद रंग का देखने मेँ मोदक जैसा लग रहा था। लाल चटनी डालकर खाया तो लगा कि दूर के ढोल सुहावने थे। ऐसा कुछ खास स्वाद जुबान को नहीँ लगा कि दुबारा खाने का मन हो।बीस रुपए मेँ आपको छह: मोमोज मिलते हैँ